गांव में नहीं हैं एक भी मुस्लिम, हिन्दू परिवार लगातार उठाते आ रहें हैं ताजिया

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गांव में नहीं हैं एक भी मुस्लिम, हिन्दू परिवार लगातार उठाते आ रहें हैं ताजिया

गांव में नहीं हैं एक भी मुस्लिम, हिन्दू परिवार लगातार उठाते आ रहें हैं ताजिया,

चौपारण : प्रखण्ड में मुस्लिम समुदायों के साथ साथ हिन्दू परिवार भी ताजिया के प्रति काफी श्रद्धा और आस्था रखते हैं। और हर वर्ष हिंदू-मुस्लिम आपसी सौहाद्र भाव से मिलजुल कर मुहर्रम के पर्व को मनाते हैं। आज प्रखण्ड के कई अखाड़ों से ताजिया नीकलेगी और कर्बला में मिट्टी को दफन करेंगे। प्रखण्ड में बच्छई पंचायत का डुमरी गांव जहां सिर्फ हिंदू ही रहते हैं वहां भी ताजिया उठाने को लेकर खासा उत्साह देखा जा रहा है।

यहां के हिन्दू सनातन धर्म को मानते हुए मुस्लिम समुदाय के चर्चित त्योहार मुहर्रम को मानते हुए मुस्लिम विधि-विधान से ताजिया को उठाते आ रहे हैं। यहां सबसे पहले गांव के जगन कांदू ने ग्रामीणों के सहयोग से आजादी के पूर्व के समय से मुस्लिम रीति-रिवाज से मुहर्रम का ताजिया उठाकर त्योहार को मनाने की शुरुवात की थी। जगन कांदू के मृत्यु के बाद उनके पुत्र तिलक कांदू ने कई वर्षों तक इस परंपरा का निर्वहन करते रहे।

तिलक कांदू के मृत्यु के बाद उनके पुत्र शुकर साव और खगन साव ने श्रद्धा पूर्वक मुहर्रम त्योहार को मनाया। उनके मृत्यु उपरांत उनके चौथी पीढ़ी सेवानिवृत पुलिस इंस्पेक्टर बालेश्वर साहू के नेतृत्व में परदादा जगन कांदू द्वारा शुरू किया गया मुहर्रम त्योहार को भली-भांति संचालन किया जा रहा है।

इस परंपरा का निर्वहन में सेवानिवृत पुलिस इंस्पेक्टर बालेश्वर साहू के भाई दिनेश साहू का सराहनीय सहयोग रहता था। जिनका असमय निधन होने के बाद सेवानिवृत पुलिस इंस्पेक्टर बालेश्वर साहू का सहयोग उनके छोटे भाई लखन साहू, अर्जुन साव, ब्रहदेव साव, रामाधिन साव, विजय साव के द्वारा किया जा रहा है। सेवानिवृत पुलिस इंस्पेक्टर बालेश्वर साहू ने बताया कि पूर्वजो के द्वारा शुरू किया गया त्योहार को श्रद्धा पूर्वक मुस्लिम रीति-रिवाज के साथ करते हुए मिट्टी रखा गया और केला पत्ता काटा गया और सोमवार को छोटकी चौकी रखा गया। बुधवार को बड़की चौकी एवं गवारा किया जाएगा।

वही संध्या में ताजिया के साथ ग्रामीणों का जुलूस निकाल कर कर्बला में दफन किया जाएगा। इसमें सबसे आश्चर्य की बात है कि कई तरह के उतार-चढ़ाव आने और डुमरी में एक भी मुस्लिम समुदाय के नही रहने के बाद भी विगत चार पीढ़ी से निरंतर हर वर्ष मुहर्रम का ताजिया उठाना हिंदू-मुस्लिम भाई चारगी का मिसाल है।

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