2019 नियोजन नीति पर ही झारखंड में 35 हजार से अधिक पदों पर बहाली

2019 नियोजन नीति पर ही झारखंड में 35 हजार से अधिक पदों पर बहाली

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2019 नियोजन नीति पर ही झारखंड में 35 हजार से अधिक पदों पर बहाली

2019 नियोजन नीति पर ही झारखंड में 35 हजार से अधिक पदों पर बहाली

2019 के नीति पर ही झारखंड में 35 हजार से अधिक पदों पर बहाली होने जा रहा है। झारखंड में वर्तमान में 26001 सहायक आचार्य नियुक्ति के साथ-साथ राज्य में आठ विभिन्न पदों पर भी नियुक्ति की प्रक्रिया जारी है।

झारखंड में सहायक आचार्य के अलावा झारखंड प्रयोगशाला सहायक  स्नातकोत्तर प्रशिक्षित शिक्षक परीक्षा,झारखंड सामान्य स्नातक योग्यताधारी संयुक्त परीक्षा, झारखंड नगरपालिका सेवा संवर्ग संयुक्त परीक्षा झारखंड डिप्लोमा स्तर संयुक्त परीक्षा,उत्पाद सिपाही परीक्षा
झारखंड औद्योगिक प्रशिक्षण सेवा,झारखंड मैट्रिक स्तर संयुक्त प्रतियोगिता परीक्षा के सभी पदों को मिलाकर लगभग 35 हजार अभ्यर्थियो की बहाली होगी।

पर अब तक नियोजन नीति को लेकर परीक्षार्थियों के साथ-साथ भाजपा ने भी इस पर सवाल खड़ा करते आ रहे हैं कि आखिर किस नियोजन नीति के अंतर्गत राज्य सरकार नियुक्तियां कर रही है। जिसपर राज्य सरकार ने विराम लगा दिया है। राज्य में अब 2019 के नीति के तहत ही झारखंड में बहाली ली जाएगी।

मंत्री ने दिया ये सदन में दिया ये जवाब

नियोजन नीति को लेकर चल रही असमंजस के बीच विधानसभा के मॉनसून सत्र में विधायक ने सवाल किया। ल मॉनसून सत्र का अंतिम दिन सदन में आजसू विधायक सुदेश महतो के बयान पर गैर सरकारी संकल्प का जवाब मंत्री आलमगीर आलम ने दिया।

जिसमें उन्होंने स्पष्ट किया कि राज्य में जो भी नियुक्तियां हो रही हैं, जिनकी प्रक्रिया चल रही है वो सभी 2019 के नीति से ही प्रभावित होगा। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि इसके अन्तर्गत राज्य के आरक्षित श्रेणी के लिए सभी नियुक्तियों में 60 फीसदी सीटें आरक्षित होंगी और 40 प्रतिशत बहाली मेरिट पर होगा।

दो नयोजन नीति हो चुकी हैं रद्द

पहली नियोजन नीति रघुवर सरकार के कार्यकाल में बना था । जिसकी अधिसूचना 14 जुलाई 2016 को जारी कर लागू किया गया। इस नीति में राज्य के 24 जिला में से 13 जिला को अनुसूचित एवं 11 जिला को गैर अनुसूचित घोषित किया गया। यह नियोजन नीति को सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दिया।

वहीं दूसरी नियोजन नीति वर्तमान की हेमन्त सरकार में बनी थी। जिसमें झारखंड से ही मैट्रिक और इंटरमीडिएट पास अभ्यर्थी ही विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में शामिल हो सकते थे। जिसे हाई कोर्ट में चुनौती दी गई थी। जिसके बाद कोर्ट ने इसे भी रद्द कर दिया।

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