
तो क्या स्थानीय नीति ? स्थानीय नीति विधानसभा से भी पारित होने के बाद अब केंद्र को मंजूरी के लिए झारखंड सरकार भेजने की तैयारी में है। इसी बीच पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास ने ऐसी बात कही है। जिससे कई प्रश्न भी खड़े हो रहे हैं। रघुवर दास ने कहा कि स्थानीय नीति परिभाषित करने व लागू करने का अधिकार राज्य को है। पर ईडी का समन मिलने के बाद आनन-फानन में 1932 का खतियान आधारित स्थानीयता नीति और आरक्षण नीति लागू करने का सरकार ने ढोंग किया। दोनों ही मामलों में नियमों का पालन नहीं किया गया। उन्हें स्थानीय नीति केंद्र के पास भेजने की आवश्यकता नहीं थी।
सातवीं अनुसूची में संविधान राज्य को स्थानीय नीति परिभाषित करने का अधिकार देता है।
2016 में भी स्थानीय व नियोजन नीति हुई थी परिभाषित
उन्होंने आगे कहा कि हमने 2016 में स्थानीय व नियोजन नीति परिभाषित की थी। तब इसे केंद्र सरकार के पास नहीं भेजा था। इसके बनने के बाद एक लाख से ज्यादा सरकारी नौकरियां दी गईं। इसमें 95 से अधिक मूलवासियों को नौकरियां मिलीं। बाबूलाल मरांडी ने भी स्थानीय नीति बनाकर केंद्र को नहीं भेजा था।
उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने खुद ही 23 मार्च को विधान सभा में कहा था कि खतियान के आधार पर स्थानीय नीति नहीं बन सकती। अब सवाल उठता है कि आखिर क्यों महागठबंधन की सरकार ने केंद्र को भेजा है ?
मुख्यमंत्री की मंशा केवल राजनीति करने की : पूर्व सीएम
मुख्यमंत्री की मंशा केवल राजनीति करने की है, इसे लागू करने की नहीं है। साथ ही इसके साथ नियोजन नीति को भी नहीं जोड़ा गया है।
पूर्व मुख्यमंत्री ने सरकार गिरने का किया दावा
पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रघुवर दास ने दावा किया है कि हेमंत सोरेन सरकार जा रही है और भाजपा सरकार आ रही है।
रघुवर दास शनिवार को दुमका में पत्रकारों के साथ बातचीत कर रहे थे। जब पत्रकारों ने उनसे पूछा कि यह राजनीतिक उलटफेर कब तक होगा तो उन्होंने कहा कि इंतजार कीजिए।
हेमन्त सरकार में बिचौलिए ,सिंडिकेट हावी
उन्होंने कहा कि हेमंत सरकार बिचौलियों, सिंडिकेट और माफियाओं के इशारे पर चलने वाली सरकार है। इसके आने के बाद से राज्य में खनिज संपदा की जमकर लूट हुई है।
उन्होंने कहा कि झारखंड में बहन-बेटियां भी अस्मत लूटी जा रही है पर यह सरकार मूकदर्शक बनी है। रघुवर दास ने कहा कि वास्तविकता यह है कि हेमंत सोरेन ने आदिवासियों को ठग कर 2019 में सरकार बनाई थी, पर अब आदिवासी हेमंत सोरेन के झांसे में नहीं आएंगे। काठ की हांडी बार-बार नहीं चढ़ती है।
तो क्या स्थानीय नीति