
झारखंड में राष्ट्रपति शासन लगाने को राज्यपाल को पत्र लिखी गई है।
पत्र में कहा गया है कि हाल में केंद्रीय जांच एजेंसी प्रवर्तन निदेशालय के द्वारा राज्य में हुए व्यापक भ्रष्टाचार के मामले में की जा रही है।
जांच के संदर्भ में माननीय मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को सम्मन जारी की गयी है।जाहिर है कि किसी भी जांच प्रक्रिया का मतलब जांच की विषय वस्तु से संबंधित तथ्यों की सत्यता का पता लगाना और संबंधित व्यक्ति की संलिप्तता के संबंध में ठोस साक्ष्य इकट्ठा करना होता है और यदि हेमंत सोरेन जी को प्रवर्तन निदेशालय के द्वारा सम्मन भेजी गई है तो भारतीय विधान के मुताबिक एक भारतीय नागरिक के रूप में और संवैधानिक पद पर होते हुए एक जिम्मेदार लोक सेवक के रूप में उनकी यह जिम्मेदारी बनती है कि वह जांच एजेंसी को उसके द्वारा किए जा रहे अनुसंधान में पूर्ण सहयोग करें ताकि यदि संबंधित तथ्यों, घटनाओं तथा लोगों से उनकी कोई संलिप्तता नहीं है तो जांच एजेंसी के समक्ष यह स्पष्ट हो सके।
श्री हेमंत सोरेन ने प्रवर्तन निदेशालय के द्वारा जारी किए गए सम्मन का पालन करने के बजाए एक और तो प्रवर्तन निदेशालय से समय की मांग की है परंतु दूसरी ओर सम्मन के अनुसार निर्धारित तिथि से 1 दिन पहले अपने आवास के बाहर हजारों की संख्या में अपने कार्यकर्ताओं को बुलाकर प्रदर्शन में हिस्सा लिया
और समुचित भीड़ को संबोधित करते हुए ललकारा अपने आम भाषणों में जो उन्होंने सम्मन की प्राप्ति के बाद विभिन्न स्थानों पर दिए हैं, उन्होंने भीड़ को संबोधित करते हुए इस तरह के भी वक्तव्य दिए है कि प्रवर्तन निदेशालय उन्हें सम्मान देने के बजाय सीधा गिरफ्तार करें।
आए दिन दिए जा रहे भड़काऊ भाषण
हेमंत सोरेन के द्वारा आए दिन भड़काऊ भाषण दिए जा रहे हैं जैसे कि उनके आदिवासी होने के कारण उनके साथ साजिश की जा रही है और यह कि प्रवर्तन निदेशालय के द्वारा की जा रही जांच के विरोध में उनके पार्टी के लोग राज्य में सभी स्तरों पर प्रदर्शन इत्यादि करें प्रवर्तन निदेशालय के द्वारा श्री हेमंत सोरेन को जारी किए गए
सम्मन की तिथि के बाद के सभी आयोजनों जिसमें श्री हेमंत सोरेन ने भाषण दिए हैं अथवा वक्तव्य दिए हैं उसके संबंध में विस्तृत जांच कराए जाने की आवश्यकता है जिससे यह साफ प्रतीत होगा कि श्री हेमंत सोरेन ने खुले तौर पर केंद्रीय जांच एजेंसी को चुनौती देने का काम किया है ।
और वे राज्य की भोली-भाली आदिवासी जनता को भड़काने का काम कर रहे हैं ताकि उनको सहानुभूति का राजनीतिक लाभ मिल सके।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 356 के प्रावधानों के तहत रास्ट्रपति शासन
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 356 के प्रावधानों से यह स्पष्ट है कि यदि महाशय को ऐसा प्रतीत हो कि राज्य सरकार, संविधान के प्रावधानों एवं कानूनों के अनुसार नहीं चल रही है और श्री हेमंत सोरेन के राज्य के मुखिया के पद पर होते हुए राज्य सरकार को संवैधानिक तरीके से नहीं चलाया जा सकता है तो राज्य में राष्ट्रपति शासन की अनुशंसा की जा सकती है।
पूर्व मुख्यमंत्री ने राज्यपाल को लिखी चिट्ठी ,
उपरोक्त परिस्थितियों में राज्यपाल से आग्रह किया गया है कि प्रवर्तन निदेशालय द्वारा जारी सम्मन की प्राप्ति के उपरांत से श्री हेमंत सोरेन, उनकी पार्टी के अन्य नेताओं तथा सरकार के मंत्रियों के द्वारा दिए गए भाषणों तथा वक्तव्य जांच कराते हुए राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास ने राज्यपाल को पत्र भेजकर की है।
झारखंड में राष्ट्रपति शासन?