सरना धर्म कोड व कुर्मी को एसटी में शामिल करने को लेकर दो बड़े संघठनों का दिल्ली में धरना

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सरना धर्म कोड व कुर्मी को एसटी में शामिल करने को लेकर दो बड़े संघठनों का दिल्ली में धरना

सरना धर्म कोड व कुर्मी को एसटी में शामिल करने को लेकर दो बड़े संघठनों का दिल्ली में धरना

झारखंड के दो बड़े संगठन दो बड़ी मांगों को लेकर दिल्ली में कार्यक्रम करने वाले हैं। इसमें झारखंड समेत देश के कई राज्यों के आदिवासी-मूलवासी संगठन हिस्सा लेंगे। इन दो बड़े मामलों में आदिवासियों का पृथक सरना धर्मकोड की मांग और दूसरा कुरमियों का एसटी सूची में शामिल करने की मांग शामिल है।

राष्ट्रीय आदिवासी समाज सरना धर्म रक्षा अभियान के तहत 11 से 12 नवंबर को दिल्ली में धरना दिया जाएगा। इसमें सरना कोड पर देश स्तर पर परिचर्चा होगी। दूसरे दिन जंतर मंतर समीप धरना कार्यक्रम होगा।

12 दिसम्बर को संसद का घेराव

एसटी में शामिल करने की मांग को लेकर झारखंड के कुर्मी गांव-गांव गोलबंद होने लगे हैं। हर गांव से चुने हुए प्रतिनिधि अपने-अपने क्षेत्र से दिल्ली कूच करने की तैयारी कर रहे हैं।

पिछले दिनों टोटेमिक कुर्मी और कुर्मी विकास मोर्चा ने फैसला लिया है कि 12 दिसंबर को अपनी मांगों को लेकर राज्य के कुर्मी संसद का घेराव करेंगे। इसमें बड़ी संख्या में कुर्मी समाज के लोग शामिल होंगे।

कुर्मी विकास मोर्चा के नेता शीतल ओहदार ने बताया कि दो महीने पहले कोल्हान से सटे बंगाल, ओडिशा के कुर्मी भी इस आंदोलन में शामिल हुए थे। कई स्थानों पर रेल रोको कार्यक्रम चला और बेहद सफल रहा। लेकिन इस बार छोटानागपुर के कुर्मी सबसे अधिक संख्या में संसद कूच करने की तैयारी में लग गए हैं।

उन्होंने कहा कि उनकी मांग पर राज्य व केंद्र सरकार ने ध्यान नहीं दिया तो उग्र आंदोलन किया जाएगा। झारखंड के कुर्मी समाज को आदिवासी का दर्जा नहीं मिला।

सामाजिक संगठनों के हाथों आंदोलन की कमान, दलीय नेता मौन कुर्मी आंदोलन का नेतृत्व किसी राजनीतिक दल के हाथों में नहीं है। इस आंदोलन की कमान फिलहाल सामाजिक संगठनों के हाथों में है। हर इलाके में अलग-अलग सामाजिक संगठन इसकी अगुवाई कर रहे हैं।

राष्ट्रीय और क्षेत्रीय राजनीतिक दल कुर्मी समुदाय के इस आंदोलन को समर्थन नहीं कर रहे हैं। कुछ दलों के कुर्मी नेता इस आंदोलन को लेकर मौन हैं, तो कुछ नेता अंदर ही अंदर इसका समर्थन कर रहे हैं।

झामुमो के विधायक और मंत्री जगरनाथ महतो ने इसका जोरदार समर्थन किया है, लेकिन पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष और सीएम हेमंत सोरेन ने इसे राजनीतिक आंदोलन करार दिया है।

कांग्रेस और भाजपा के नेता इस मुद्दे पर सार्वजनिक रूप से बयान देने में गुरेज कर रहे हैं। यह एक नीतिगत विषय है और इस पर जब तक पार्टी का आला नेतृत्व अपना रुख स्पष्ट नहीं करेगा, तब तक राज्य के नेता इस पर कोई टिप्पणी नहीं कर सकते हैं।

कांग्रेस ने पूरे मामले के अध्ययन के लिए बनायी विशेष कमिटी


झारखंड प्रदेश कांग्रेस ने इस मुद्दे से किनारा करने के लिए एक चतुरायी पूर्ण कदम उठाया है। प्रदेश कमेटी ने एक अध्ययन दल बनाया है, जिसमें कांग्रेस के कुर्मी और आदिवासी समुदाय के वरिष्ठ नेताओं को अध्ययन दल में शामिल किया गया है। यह अध्ययन दल पूरे मामले का अध्ययन कर अपनी रिपोर्ट कांग्रेस नेतृत्व को सौंपेगा। रिपोर्ट के अनुसार ही इस पर प्रदेश कांग्रेस अपना मंतव्य देगी।

भाजपा फिलहाल इस मामले में पूरी तरह मौन है। 2004 में तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा के कार्यकाल के समय झारखंड से इस संबंध में एक रिपोर्ट केंद्र सरकार को भेजी गई थी। लेकिन यह रिपोर्ट अभी जस की तस है।

आदिवासी समुदाय कर रहे हैं विरोध

झारखंड के कुर्मियों की इस मांग का आदिवासी समुदाय खुलकर विरोध कर रहे हैं। इसे लेकर इनकी कई बैठकें हो चुकी हैं। पूर्व सांसद सालखन मुर्मू इसकी मुखालफत करनेवाले नेता हैं। गीताश्री उरांव और आदिवासी सरना संगठन भी इस आंदोलन का विरोध कर रहे हैं।

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