
झारखंड के प्रसिद्ध त्योहारों में सोहराय पर्व भी अपना एक खास स्थान रखता है। बता दें कि सरायकेला-खरसावां जिले के राजनगर प्रखंड में सोहराय पर्व 5 दिनों तक मनाया जाता है।
इसमें से आज झारखंड के कई स्थानों में गोट माड़ा के साथ सोहराय पर्व आरंभ भी हो गया, लेकिन कुछ जगहों पर सूर्य ग्रहण को देखते हुए बुधवार को गोट माड़ा किया जाएगा।
बता दें कि सोहराय संथाल आदिवासियों का एक महत्वपूर्ण त्योहार है। इस पर्व में आदिवासी अपने पालतू पशुओं को नदी, नाला या तालाबों में अच्छे से नहलाते हैं। इसके बाद ग्रामीण गांव के एक छोर में नायके (पुजारी) द्वारा पूजा-अर्चना करते है। इसके बाद मुर्गा की बलि दी जाती है और बलि दिये गये मुर्गे की खिचड़ी पकाई जाती है। इसे खिचड़ी को लोग प्रसाद के रूप में ग्रहण करते है।
सोहराय में पालतू पशुओं की होती है पूजा
बता दें कि सोहराय पर्व में पालतू पशुओं की पूजा की जाती है। इस दौरान लोग अपने पालतू पशुओं के तेल लगाते हैं। साथ ही महिलाएं सूप (कुला या हाटा) में अरवा चावल, धूप, घास एवं दीया-बत्ती से मवेशियों की आरती उतारती है। इसके बाद शाम होते ही लोग अपने-अपने घर के मुख्य द्वार जिससे पालतू पशु घुसते हैं, उसमें अल्पना लिखकर अरवा चावल की गुंडी से लिखने वालाघास रखा जाता है, ताकि घास खाते हुए मवेशी घर में प्रवेश करें।
सोहराय के दूसरे दिन होती है गोहाल पूजा
बता दें कि आदिवासी दूसरे दिन भी पहले दिन की तरह शाम के समय मवेशियों की अरती उतारकर पूजा करते है। इसके बाद रात को ढोल-नगाड़ा बजाकर गाय-बैलों का जागरण किया जाता है। वहीं रात को पुरुष वर्ग ढिगवानी करते हैं। बता दें कि गोहाल पूजा में अलग-अलग घरों में अलग-अलग पूजा की जाती है।
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